“सद्गुरु त्रिविर साहित्य ~ Sadguru Trivir’s Books”
निम्नलिखित लिंक पर क्लिक करके सद्गुरु त्रिविर की पुस्तकें/साहित्य डाउनलोड करें:- सद्गुरु त्रिविर Essence of Spiritualism (English) ओशो सिद्धार्थ आदि
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Read moreओशो से बिल्कुल अलग नहीं है। ओशोधारा ओशो की ही परंपरा में है। जब भी कोई युगपुरुष आता है तो उसके बाद एक स्कूल तैयार हो जाता है जो कहता है कि आखिरी गुरु हो गया और अब आगे किसी गुरु की जरूरत नहीं है। जैसे बुद्ध आए, तो कहा गया कि वह आखिरी बुद्ध हैं। लेकिन बुद्ध के बाद मंजूश्री ने कहा कि परंपरा को अगर आगे ले जाना है तो आगे भी गुरु की जरूरत होगी। इसलिए मंजूश्री के साथ जो लोग चले, उन्हें महायानी कहा गया यानी गुरु एक जहाज की तरह होता है जिसमें अनेक लोग सवार होकर भवसागर को पार करते हैं। लेकिन बाकी शिष्यों ने कहा कि बुद्ध ने जो कहा, उसी को समझना काफी है। उन लोगों को हीनयान कहा गया। करीब-करीब सभी गुरुओं के साथ यही हुआ। हजरत मुहम्मद के साथ भी यही हुआ। लेकिन उनके बाद मौला अली से सूफियों की जीवंत परंपरा चली। सूफी भी गुरु परंपरा में विश्वास करते हैं। ओशो भी विदा हुए तो लोग ऐसी ही बात करने लगे लेकिन हम लोगों ने महसूस किया कि शास्त्र के आधार पर परंपरा जीवित नहीं रह सकती, शास्ता (बुद्ध पुरुष) के आधार पर जीवित रह सकती है। यही सोचकर मैंने ओशोधारा की शुरुआत की। फिर इसमें ओशो शैलेंद्र जी और मां प्रिया जुड़ीं।
Read moreगुरु से जुड़ोगे तो सिद्धि होगी, अनुभव होगा, अपने अनुभव से जिन्दगी को जियोगे। लेकिन अगर गुरु से नहीं जुड़े, सद्गुरु से नहीं जुडे़ और सिद्धांत से जुड़ गये हो, तो तुम्हारे जीवन में क्या होगा? जो सद्गुरु से नहीं जुड़े हैं, उनके जीवन में क्या हो रहा है? वे किसी न किसी वाद से जुड़ेंगे। वाद का मतलब- सिद्धांत। माओवाद, गांधावाद, लैनिनवाद और बड़े सारे वाद हैं। वहाबी वाद सबसे खतरनाक है। सलाफी वाद और भी खतरनाक है। क्योंकि जब वाद होगा तो विवाद भी होगा। यह हो ही नहीं सकता कि वाद हो और विवाद न हो। वाद, विवाद तक रूक जाए तो कोई दिक्कत नहीं, विवाद हो रहा है, बहस हो रही है। लेकिन जब विवाद होगा तो फसाद भी होगा। फसाद यानि हिंसा।
Read moreInner journey starts with meditation. But the destination is Nirvana. And Samadhi is in middle. As a matter of fact, a seeker should have a complete mental picture of the inner journey. I have very much felt this. For example, if a tourist goes somewhere he has its complete route map. But the picture of the inner journey has not yet been presented properly.
But for the first time in Oshodhara we wish to give the complete picture of the inner journey. From where should a disciple begin? Which milestones will be there, and then where he has to go? In short I would like to say that Meditation is the beginning, Samadhi is the middle, Absolute Love is the destination. So understand these three words properly.
Read moreMind, Intelligence & mind-stuff (Chitt) Neither of these three will lead us to our own ultimate core of being. It is only possible in our “Antar Gufa – Inner Cave.” In this cave there is no duality, there is no one to speak and to listen to. The word is not needed there. There exists the “Anahad Nad – The soundless Sound.” The Holy bible describes it as “Logos.” It is also called as Naam, your inner self, Omkar, the Ultimate sound. Omen, Amen, Om Mani Padme Hum are the different names of the same reality. To talk of it is not possible but each of us can experience it.
Read moreसंसार इस मृगमरिचिका में पड़ा है कि कर्म से सुख मिलता है। लेकिन कर्म से सुख मिलता नहीं। सुख बाहर से मिलने की चीज़ ही नहीं है। ‘सुखस्य दुखस्य नवकोपिदाता, परोददाति इति विमूढ़चेता।’ सुख बाहर से मिलता नहीं। इसीलिए चौथा आर्य सत्य मैं कहना चाहूंगा कि सुख उपाय से नहीं मिलता, क्योंकि सुख बाहर से नहीं मिलता। अगर बाहर से मिलता हो, तो कुछ उपाय किए जा सकते हैं। लेकिन सुख बाहर से मिलता नहीं। इसलिए सुख का कोर्इ उपाय नहीं हो सकता। सुख जीवन की सहज अवस्था है। जिसको ओशो कहते हैं-‘परमात्मा तुम्हारा स्वभाव है।’ सुख तुम्हारा स्वभाव है। ‘आनंद आमार गोत्रा, उत्सव आमार जाति।’ आनंद तुम्हारा बीज है। सुख तुम्हारा बीज है। सुख अभी, यहीं और अकारण है। याद रखना सुख का कोर्इ कारण नहीं है। दुख का कारण है। सुख का कारण नहीं है। दुख का कारण क्या है-कामना।
Read moreपहले तो यह समझें कि धर्म क्या है और धार्मिकता क्या है? धर्म के दो आयाम हैं- एक कट्टरता और दूसरा धार्मिकता। कट्टरता – जहाँ धर्म रुक जाता है। धार्मिकता – जहाँ धर्म प्रवाहित रहता है। कट्टरता कर्मकाण्ड में ले जाती है। धार्मिकता जीवन्तता में ले जाती है।
धर्म या तो आगे बढ़ेगा या पीछे जायेगा। अगर धर्म जीवन्त नहीं हो तो कट्टरता उसकी नियति है। तो पहली बात कि धर्म अपने आप में, स्वतन्त्र रूप में व्याख्येय नहीं है। धर्म का कौन-सा स्वरूप धार्मिकता का स्वरूप है, और कौन-सा रूप कट्टरता का स्वरूप है? जब भी कोई बुद्ध पुरुष आता है, जब भी कोई सद्गुरु आता है, जब भी कोई पूरा गुरु होता है, उस धर्म में तो धार्मिकता पैदा होती है और जब वह विदा हो जाता है, तो उसके पीछे एक राख रह जाती है और कट्टरता से कर्मकाण्ड का जन्म होता है।
Read moreमेरे प्रिय आत्मन, संत दादू 16 वी सदी के उत्तराद्र्ध में खिले अनूठे फूल हैं। कबीर की परंपरा जब आगे
Read moreसदगुरु ओशो सिद्धार्थ जी ओशो नानक धाम में दर्शन दरबार में साधको से मिलते है | इस मिलन में सदगुरु एवं शिष्यों के बीच एक जीवंत उपनिषद् रचा जाता है |
Read moreThe Sanskrit term ‘Upaniṣhad’ (u = at, pa = foot, nishat =sitting down) translates to “sitting at the foot/feet of”,
Read moreThere are four kinds of Sumiran or divine remembrance, namely: • Sumiran through the mouth • Sumiran through the mind: This is a stage higher. We move a step inward from the mouth to the mind. • Sumiran through the Heart or Love: This is yet higher type of devotion but yet not the peak is achieved. • Sumiran through Being: When devotion starts happening through your entire being or one is totally dissolved in Sumiran then it is the climax.
Read moreThe 16th century was blessed with the grace of Guru Nanak Dev ji. Actually He was born in 1469 in
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