“विज्ञान: विश्वास से विवेक की ओर” – ओशो
हमारी चेतना में हो रही इस सारी उथल-पुथल, अराजकता, क्रांति और नए के जन्म की संभावना का केंद्र और आधार विज्ञान है। विज्ञान के आलोक ने हमारी आंखें खोल दी हैं और हमारी नींद तोड़ दी है। उसने ही हमसे हमारे बहुत-से दीर्घ पोषित स्वप्न छीन लिए हैं और बहुत से वस्त्र भी और हमारे स्वयं के समक्ष ही नग्न खड़ा कर दिया है, जैसे किसी ने हमें झकझोर कर अर्धरात्रि में जगा दिया हो। ऐसे ही विज्ञान ने हमें जगा दिया है।
विज्ञान ने मनुष्य का बचपन छीन लिया है और उसे प्रौढ़ता दे दी है। उसकी ही खोजों और निष्पत्तियों ने हमें हमारी परंपरागत और रूढ़िबद्ध चिंतना से मुक्त कर दिया है, जो वस्तुतः चिंतना नहीं, मात्र चिंतन का मिथ्या आभास ही थी; क्योंकि जो विचार स्वतंत्र न हो वह विचार ही नहीं होता है। सदियों-सदियों से जो अंधविश्वास मकड़ी के जालों की भांति हमें घेरे हुए थे, उसने उन्हें तोड़ दिया है, और यह संभव हो सका है कि मनुष्य का मन विश्वास की कारा से मुक्त होकर विवेक की ओर अग्रसर हो सके।
कल तक के इतिहास को हम विश्वास-काल कह सकते हैं। आनेवाला समय विवेक का होगा।