“ओशो की उपस्थिति का अनुभव ! ” – ओशो शैलेन्द्र
मैं इतने हजारों संन्यासी मित्राों से मिलता हूँ, और उनसे पूछता हूं कि आप ओशो की उपस्थिति किस रूप में अनुभव करने की कोशिश करते हैं? उन्हें कुछ भी पता नहीं है, इस मामले में बिल्कुल ही अन्धेरा छाया हुआ है। जबकि स्वयं ओशो ने खूब विस्तार से वर्णन किया है कि आप जिस सदगुरु से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं, अब वह कहां हैं, किस रूप में है , उनसे जुड़ने का अर्थ क्या है और उनसे जुड़ने की विधि क्या है? पंतजलि ने खूब अच्छे से समझाया है कि ओम को जपो, ओम पर ध्यान दो और ओम में डूबो। क्योंकि सदगुरु देह त्यागने के बाद अनहद-नाद हो जाते हैं। वे ओम का प्रकाश हो जाते हैं। यह नाम आपने सुना होगा? हमारे मुल्क में बहुत कामन नाम है ओमप्रकाश। कभी आपने ख्याल नहीं किया होगा ओमप्रकाश का अभिप्राय क्या है- ओंकार की रोशनी। ओंकार के दो रूप मुख्य हैं- एक ध्वनिमय रूप, एक प्रकाशमय रूप। गोरखनाथ पर प्रवचन देते हुए ‘मरौ हे जोगी मरौ में ओशो समझाते हैं गोरखनाथ का यह प्यारा वचन- ‘शब्द भया उजियाला।’
वह जो भीतर शब्द गूंज रहा हैं ओंकार का, जैसे वह प्रकाशित हो जाए, ऐसी अदभुत घटना घटती है। शब्द भया उजियाला। भीतर का अनाहत शब्द दो रूपों में प्रगट होता है- स्वर व उजाले की तरह। अशरीरी सदगुरु भी उसी आलोकित शब्द में समा जाते हैं।
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